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एसआईटी द्वारा गैर पुश्तैनी की जांच विषय से भटकी किसानों के गले में अटकी।

किसानों में रोष स्वरूप धधक रही आग बनेगी ज्वाला-कर्मवीर नागर प्रमुख।      

          गैर पुश्तैनी काश्तकारों को आबादी के नाम पर भूमि छोड़ने  और लीजबैक करने की शिकायत के संबंध में 10 जनवरी 2019 को शासन द्वारा गठित विशेष जांच दल ने लंबी मैराथन के बाद चिर प्रतीक्षित एसआईटी रिपोर्ट शासन को भेज दी गई है। जिस के बहाने किसानों की लीज बैक, आबादी निस्तारण व शिफ्टिंग आदि मामलों का निस्तारण प्राधिकरण अधिकारियों ने बंद किया हुआ था।

   

एसआईटी द्वारा गैर पुश्तैनी की जांच विषय से भटकी किसानों के गले में अटकी

  प्रमुख ने कहा कि सूत्रों से मिल रही जानकारी के अनुसार आखिरकार वही हुआ जिसका अंदेशा था। जिसके लिए समय-समय पर जनप्रतिनिधियों को आगाह किया जा रहा था कि जांच में प्रभावशाली गैर पुश्तैनी काश्तकारों को बचाने एवं लाभ पहुंचाने के लिए प्रयास किया जा रहा है।

   अरुण वीर सिंह सीईओ यमुना प्राधिकरण की अध्यक्षता में गठित जांच दल ने "गैर पुश्तैनी काश्तकारों की लीजबैक और आबादी भूमि छोड़ने की जांच" करने के बजाए जांच को विषय से भटकाते हुए पुश्तैनी काश्तकारों के गले की फांस बना दिया है। एसआईटी की जांच रिपोर्ट इस कहावत को पूरी तरह चरितार्थ करती नजर आ रही है कि "गए थे नमाज छुड़ाने रोजे गले पड़ गए।"

    कर्मवीर प्रमुख ने कहा कि प्राधिकरण द्वारा अर्जित भूमि की एवज में 5/6/7 परसेंट विकसित भूखंड के आवंटन हेतु प्राधिकरण के अधिकारियों द्वारा भूमि की अनुपलब्धता बताए जाने पर शिकायत कर्ताओं ने गैर पुश्तैनी काश्तकारों की बड़े स्तर पर अधिग्रहण/ अर्जन मुक्त की गई भूमि और लीजबैक किए जाने की शिकायत इसलिए की थी ताकि उक्त भूमि पर किसानों को भूखंड आवंटित किए जा सके। लेकिन  शासन द्वारा गठित एसआईटी द्वारा शिकायतकर्ता की शिकायत की जांच के विषय पर फोकस न करना और उल्टे पुश्तैनी काश्तकारों के गले पर तलवार लटकाना प्राधिकरण के अधिकारियों की किसान विरोधी मानसिकता का स्पष्ट परिचायक है।

         किसानों की आबादी हेतु की गई लीजबैक और किसानों की अर्जित भूमि की एवज में 5/6/7 परसेंट विकसित भूखंड के आवंटन को आवासीय भूमि उपलब्ध कराने की दृष्टि से एक साथ जोड़ कर देखना तर्कसंगत कानून सम्मत और न्याय सम्मत नहीं है बल्कि किसानों का गला घोंटने के समान है। किसान के आवासीय उपयोग में लाई जा रही भूमि की लीजबैक को जांच रिपोर्ट में आवासीय भूमि उपलब्ध होना आधार मानकर अर्जित भूमि की एवज में 5/6/7 परसेंट के विकसित भूखंड न देना प्राधिकरण की तानाशाही है। क्योंकि ग्रेटर नोएडा प्राधिकरण की स्थापना के वक्त निर्मित  बाइलॉज में किसानों की अर्जित भूमि की एवज में 10 फ़ीसदी विकसित भूखंड आवंटित किए जाने का स्पष्ट उल्लेख है। जिसे शासन ने घटाकर अब 5/6/7 फ़ीसदी कर दिया है।

      एसआईटी की रिपोर्ट में देखने का विशेष विषय यह भी है कि जिस एसआईटी ने जांच रिपोर्ट में लीजबैक का लाभ लेने वाले किसानों को विकसित भूखंड आवंटित किए जाने पर एक तरफ तो आपत्ति जताई है लेकिन दूसरी तरफ अगर आबादी भूमि की लीजबैक के साथ अर्जित भूमि की एवज में भूखंडों का आवंटन शासनादेश के विरुद्ध था तो आदेश का उल्लंघन करने वाले प्राधिकरण अधिकारियों के विरुद्ध क्या कार्यवाही करने की संस्तुति की गई है ?

       कर्मवीर नागर प्रमुख ने कहा कि दुनिया की नजरों में गौतम बुद्ध नगर का किसान बहुत खुशहाल है लेकिन वास्तविकता यह है कि गौतमबुद्ध नगर स्थित तीनों प्राधिकरणों ने इस जनपद के किसानों का कल्पना से भी अधिक भारी नुकसान किया है। सर्वप्रथम तो प्राधिकरण के अधिकारियों ने इस जिले में पंचायत चुनाव पर रोक लगवा कर लोकतंत्र को समाप्त कराने का किसान विरोधी काम किया है क्योंकि प्राधिकरण अधिकारियों द्वारा किसानों की आवाज को दबाने का यह भी चालाकी भरा षड्यंत्र था। द्वितीय स्थानीय युवा बेरोजगारों को स्थानीय उद्योगों में रोजगार ना देकर अपराध के रास्ते पर जाने के लिए मजबूर कर दिया है। इसके अतिरिक्त किसान के हित में स्थानीय जनप्रतिनिधियों की आवाज भी प्राधिकरण के विरुद्ध उतनी बुलंद नहीं है जितनी होनी चाहिए। इसी वजह से बेखौफ तीनों प्राधिकरण घोटालों और अनियमितताओं का केंद्र बन गए हैं और बेखौफ होकर किसानों का अहित करने से बाज नहीं आ रहे हैं।

कर्मवीर नागर प्रमुख ने जारी बयान में कहा कि ऐसे में गौतम बुद्ध नगर के तमाम किसान संगठनों को एक साथ इकट्ठे होकर प्राधिकरण की  किसान विरोधी नीतियों के विरुद्ध आवाज उठानी चाहिए। साथ ही साथ स्थानीय जनप्रतिनिधियों को भी एसआईटी द्वारा पुश्तैनी काश्तकारों का गला घोटने वाली रिपोर्ट के विरुद्ध शासन स्तर पर विरोध जताना चाहिए। सत्ता और सरकार को अवगत कराना चाहिए कि यह वही किसान हैं जिन्होंने भाजपा सरकार में अपनी भलाई का सपना देखते हुए सन 2017 के चुनाव में गौतम बुद्ध नगर की सभी सीटों पर भगवा ध्वज लहराया था। जनप्रतिनिधियों को सरकार के संज्ञान में लाना चाहिए कि पहले तो तीनों प्राधिकरण किसान का अहित करते रहे हैं और अब एसआईटी द्वारा शिकायत के विषय से हट कर जांच रिपोर्ट ने गौतम बुद्ध नगर के किसानों के सपनों और उम्मीदों को पूरी तरह से ध्वस्त कर दिया है।

     कर्मवीर नागर प्रमुख ने कहा कि अगर इस जांच रिपोर्ट से पुश्तैनी किसान हितों पर कुठाराघात करने वाले बिंदुओं को नहीं हटाया गया तो किसानों के अंदर धधक रही आग जल्दी ही ज्वाला बन कर भड़केगी। एसआईटी द्वारा शिकायत के विषय से हटकर प्रस्तुत की गई जांच रिपोर्ट के विरुद्ध सड़क से संसद तक लड़ाई लड़ने के साथ साथ कानूनी लड़ाई के लिए भी किसान पूरी तरह से तैयार है। बस इंतजार इस बात का है कि जिन जनप्रतिनिधियों को ऐसे आड़े वक्त के लिए क्षेत्र की जनता ने चुना था वह इस रिपोर्ट के विरुद्ध किसानों को किस हद तक सहयोग कर पाएंगे।

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