गौतमबुद्ध नगर में बढ़ते शहरीकरण ने दबाई किसानों की आवाज
वोट के खातिर बदल रही हैं समस्या निस्तारण की प्राथमिकता -कर्मवीर नागर प्रमुख
कृषि प्रधान देश कहे जाने वाले भारत में देश की आजादी से लेकर अब तक भले ही अनेक नेताओं ने किसानों के नाम पर राजनीति करके संसद तक पहुंचने का रास्ता अख्तियार किया हो! लेकिन चुनिंदा किसान नेताओं को छोड़कर अधिकतर ने इस असंगठित किसान को चुनावों में किसान के नाम पर सब्जबाग दिखाकर अधिकतर ठगने का ही काम किया है! इसे इस देश के किसान का भोलापन कहें या विवशता कि वह एक बार नहीं बहुत बार ठगा गया है !
किसान राजनीति के वर्तमान परिवेश पर नजर डालें तो एनसीआर और मेट्रो शहरों के इर्द-गिर्द बढ़ते शहरीकरण की वजह से संसद के वर्तमान सत्र में प्रस्तुत किए गए किसान विधेयक पर लोगों में बहुत अधिक क्रिया प्रतिक्रिया देखने को नहीं मिल रही है! इस बढ़ते शहरीकरण ने किसान की आवाज को बंद करने का काम किया है !
दिल्ली से सटे एनसीआर क्षेत्र के जनपद गौतमबुद्ध नगर में बढ़ते शहरीकरण का किसानों की समस्याओं के निस्तारण के संबंध में जिम्मेदार राजनेताओं की अरुचि का स्पष्ट दुष्प्रभाव नजर आ रहा है ! जहां नोएडा, ग्रेटर नोएडा और यमुना एक्सप्रेस वे औद्योगिक विकास प्राधिकरण के किसान लंबे अरसे से अपने अस्तित्व की लड़ाई लड़ रहे हैं, सरकार भले ही किसी भी राजनीतिक दल की रही हो, लेकिन कमोबेश हर सरकार में जनपद गौतमबुद्धनगर का किसान स्वयं को उपेक्षित महसूस करता रहा है! यहां तक कि ग्रामीणों और किसानों के बूते राजनीति का सफर प्रारंभ करने वाले राजनेता भी बढ़ते शहरीकरण की चमक दमक के मोह पाश में फंस कर ग्रामीणों और किसानों से तटस्थता बरतते नजर आ रहे हैं ! चर्चाएं आम तो यहां तक भी है कि बढ़ते शहरीकरण के दबाव और प्रभाव में जनपद गौतमबुद्ध नगर के राजनेताओं ने अपनी प्राथमिकताएं ही बदल दी है ! इसीलिए शहरी क्षेत्र के मतदाता पर निशाना साधने की वजह से गांव देहात के आम आदमी और किसान की समस्या राजनेताओं की प्राथमिकता की सूची में निचले पायदान पर खिसकती नजर आ रही है! यहां मेरे कहने का इरादा यह कतई नहीं है कि किसी क्षेत्र विशेष के वाशिंदे विकास से वंचित रखे जाएं सभी क्षेत्रवासी समान विकास के हकदार हैं! निसंदेह राजनेता का उत्तरदायित्व हर जाति, हर धर्म, हर वर्ग और समूचे क्षेत्र के लिए एक समान है लेकिन अगर क्षेत्रीय लोगों की चर्चाओं में सत्यता है तो वोट की राजनीति के खातिर क्षेत्र को विभक्त कर प्राथमिकताएं तय करना निष्पक्ष और स्वस्थ लोकतांत्रिक परंपरा के परिभाषा के दायरे में नहीं आती है इस तरह की अनदेखी किया जाना देश के प्रधानमंत्री माननीय नरेंद्र मोदी जी के नारे "सबका साथ, सबका विकास" को ठेस पहुंचाती है!
"गौतमबुद्धनगर के प्राधिकरण अधिकारी और एसआईटी विवश कर रही है किसानों को आत्महत्या के लिए ?"
यह सब बढ़ते शहरीकरण की ही मुख्य वजह है कि आज गौतमबुद्ध नगर का आम आदमी और किसान स्वयं को उपेक्षित महसूस कर रहा है ! यह सब बढ़ते हुए शहरीकरण का ही दुष्प्रभाव है कि गैर पुश्तैनी काश्तकारों की लीजबैक की गई भूमि की जांच कर रही एसआईटी द्वारा एक वर्ष और 9 माह बीत जाने के बाद भी रिपोर्ट न देने के बावजूद कोई यह पूछने तक तैयार नहीं की उत्पीड़न झेल रहे किसानों को कब राहत मिलेगी ! इसी तरह किसानों की भूमि की शिफ्टिंग पॉलिसी आज तक लागू नहीं किए जाने की वजह से गौतम बुद्ध नगर का किसान त्राहि त्राहि कर रहा है! प्रदेश के मुख्यमंत्री के आदेश के बावजूद भी किसानों की आबादी निस्तारण के मामले नहीं सुलझाए जा रहे हैं! ऐसे में गौतमबुद्ध नगर का किसान इसलिए मायूस नजर आ रहा है क्योंकि जिस उम्मीद में किसानों ने सत्ता में भागीदारी के लिए बढ़-चढ़कर हिस्सा लिया था शायद कहीं ना कहीं किसान अपने को उपेक्षित महसूस कर रहे हैं !
ऐसे में सवाल यह उठता है कि क्या जनपद गौतमबुद्ध नगर के प्राधिकरण अधिकारी किसानों को आत्महत्या के लिए विवश कर रहे हैं ? अगर किसी किसान द्वारा मजबूरी वश ऐसा अमानवीय कृत्य करने के लिए कभी कोई कदम उठाया गया तो उसके जिम्मेदार प्राधिकरण अधिकारी ठहराए जाने चाहिए! साथ ही साथ ऐसी घटना, दुर्घटनाओं का इंतजार किए बगैर राजनेताओं को भी किसानों की आवाज बनकर अपने दायित्वों का निर्वहन के लिए आगे आना चाहिए!
