जनहित के मुद्दों पर भी श्रेय लेने की होड करें सत्तासीन जनप्रतिनिधि।
श्रेय लेने की होड़ में तीव्रता हेतु विपक्षी नेता भी निभायें अपना फर्ज ।
- कर्मवीर नागर प्रमुख
कुछ ऐसी घटना और दुर्घटनाओं, जिन पर किसी भी क्षेत्र में अचानक बवाल खड़ा हो जाता है और मीडिया में प्रकाशित प्रचारित हो जाने के कारण जिनका संज्ञान शासन और प्रशासन ले लेता है, आमतौर पर देखा गया है कि उनका श्रेय लेने के लिए स्थानीय जनप्रतिनिधियों में भी होड़ सी मच जाती है। गौतम बुद्ध नगर में विगत दिनों घटित ऐसी ही कुछ घटनाओं में स्थानीय जनप्रतिनिधियों की होड़ देखने को मिली। ऐसी ही घटना के संबंध में एक अखबार में प्रकाशित तस्वीर से एक माननीय का फोटो नदारद किया जाना भी कुछ इसी तरह की राजनीतिक श्रेय लेने की होड़ की वजह से आम चर्चा का विषय बना । मेरा इस ओर इशारा करने के पीछे किसी की आलोचना अथवा किसी पर व्यंग करने का इरादा कतई नहीं है बल्कि किसी भी व्यक्ति का मदद के लिए आगे आना इंसानियत और मानवता की निशानी है। हां ऐसी घटनाओं के वक्त श्रेय लेने की होड़ का उदाहरण देने के पीछे मेरा मकसद जनपद गौतम बुद्ध नगर के क्षेत्रीय जन प्रतिनिधियों का ध्यान जनहित के उन मुद्दों की तरफ इंगित कराना मात्र जरूर है जो मुद्दे ऐसी ही घटनाओं का कारण बन सकते है। अगर स्थानीय जनप्रतिनिधि इनके निस्तारण के लिए भी होड करें तो क्षेत्र का नजारा बदलने में देर नहीं लगेगी।
अगर जनपद गौतम बुद्ध नगर के परिपेक्ष्य में ही बात करें तो इस जनपद के तीनों प्राधिकरण लंबे अरसे से मनमानी और तानाशाही के रवैया पर उतारू हैं। प्राधिकरण के अधिकारियों की मनमानी से आजिज आकर कई बार किसान घोड़ी बछेड़ा और भट्टा पारसोल जैसे आंदोलनों के लिए मजबूर हुए हैं। अगर जनप्रतिनिधियों में ऐसे मुद्दों के निस्तारण का श्रेय लेने की होड़ मची होती तो शायद शासन प्रशासन से कभी भी टकराव की स्थिति पैदा नहीं होती और जन धन की क्षति हुए बगैर मुद्दों का निस्तारण समय से पूर्व हो गया होता।
कर्मवीर नागर प्रमुख ने कहा कि किसानों की समस्याओं का निस्तारण न किए जाने की वजह से जनपद गौतम बुद्ध नगर के किसानों में लंबे अरसे से भारी रोष पनप रहा है। स्थानीय उद्योगों में युवा बेरोजगारों को रोजगार देने की अनदेखी के कारण युवाओं में बेरोजगारी की समस्या क्षेत्र की युवा शक्ति को गलत रास्ते पर जाने के लिए मजबूर कर रही है। स्कूलों द्वारा मनमानी फीस वसूली और ग्रामीण बच्चों को अच्छे स्कूलों में दाखिला न दिए जाने की समस्या और अस्पतालों में ग्रामीणों और गरीबों को इलाज कराने में छूट न देने जैसी समस्याएं इस क्षेत्र की कोई नई समस्या नहीं है। लेकिन इन समस्याओं के समाधान के लिए स्थानीय प्रतिनिधियों में कभी श्रेय लेने की होड़ लगती भी नहीं देखी है।
कर्मवीर नागर प्रमुख ने कहा कि जनपद गौतमबुद्ध नगर में गांव की सरकार खत्म करके लोकतंत्र का गला घोट दिया गया । हो सकता है उन कुछ चंद लोगों के लिए पंचायतों का गठन अथवा नगर निगम का गठन कराया जाना कोई महत्वपूर्ण विषय ना हो जो लोग जनप्रतिनिधियों और बड़े नेताओं के संपर्क में रहते हैं, जिनकी अपनी राजनीतिक पहुंच और पकड़ है, जिनका अपना प्रभाव और दबदबा है, लेकिन गांव देहात और शहर का वह आम आम आदमी जिसकी शासन, प्रशासन और राजनीतिक स्तर पर कोई पहुंच पकड़ नहीं है उसके लिए पंचायत राज व्यवस्था का समाप्त किया जाना कितना कष्टप्रद है। यह सब वही जानता है जिसे केंद्र एवं राज्य सरकार की जनकल्याणकारी योजनाओं के लाभ से वंचित होना पड़ रहा है।
कर्मवीर नागर प्रमुख ने कहा कि लंबे अरसे से गौतमबुद्ध नगर की जनता इस बात का एहसास कर रही है कि जब भी प्रदेश में किसी भी दल की सत्ता होती है तो उससे ताल्लुकात रखने वाले जनप्रतिनिधि आमतौर पर किसानों और स्थानीय बेरोजगार युवाओं के मुद्दों पर मौन हो जाते हैं और अन्य विपक्षी दलों के नेता भी न जाने ऐसे मुद्दों पर क्यों भूमिगत हो जाते हैं ? यह वह प्रश्न है जिसका उत्तर भी सब जानते हैं लेकिन चुनाव के वक्त विभिन्न दलों के नेताओं के भ्रम जाल में फंस कर इन मुद्दों को उठाने कि कोई जहमत नहीं उठा पाता। फिर 5 साल तक सत्ता, सरकार और जनप्रतिनिधियों को भला बुरा कहते हैं नजर आते हैं।
लेकिन विश्व की सबसे बड़ी लोकतंत्र व्यवस्था में मुद्दों की राजनीति से परे निजी भावनाओं और तालुकातो के आधार पर जनप्रतिनिधि का चुनाव करने वाली भोली भाली जनता हर बार ऐसे ही आरोप-प्रत्यारोप लगाते हुए नजर आती है। इसलिए जब तक सत्ता पक्ष के जनप्रतिनिधियों में किसानों और युवा बेरोजगारों के मुद्दों से जुड़ी हुई समस्याओं के निस्तारण का श्रेय लेने की होड़ पैदा नहीं होगी तब तक क्षेत्र का किसान और युवा इसी तरह मन मसोश कर मजबूर होता रहेगा। इसी तरह जब तक विपक्षी दलों के नेता भी क्षेत्रीय मुद्दों के लिए अपना फर्ज और धर्म निभाते हुए विपक्षी भूमिका में अपनी आवाज बुलंद नहीं करेंगे तब तक क्षेत्र के किसानों के हालात सुधरने वाले नहीं हैं।
किसान संगठनों के बार-बार चिल्लाने और आवाज उठाने के बाद भी एसआईटी की जांच रिपोर्ट प्रस्तुत न किया जाना और एसआईटी द्वारा गैर पुश्तैनी काश्तकारों की लीजबैक जांच किए जाने के बहाने पुश्तैनी किसानों की लीजबैक और आबादी समस्याओं के निस्तारण पर रोक लगा देना प्राधिकरण अधिकारियों की खुल्लम खुल्ला तानाशाही है। यह वही किसान संगठन है, चुनाव के वक्त जिनके समर्थन की घोषणा कराने के लिए उम्मीदवार समर्थन पत्र प्राप्ति के लिए एड़ी चोटी का जोर लगा देते हैं। इसलिए क्षेत्रीय मुद्दों के निस्तारण हेतु भी सत्ता से जुड़े जनप्रतिनिधियों को श्रेय लेने की होड़ में आगे आना चाहिए। साथ ही साथ विपक्षी नेताओं को भी विपक्षी होने का फर्ज, धर्म और भूमिका निभाने के लिए आगे आना होगा।
कर्मवीर नागर प्रमुख ने उत्तर प्रदेश के शासन और सत्ता का ध्यान इंगित कराते हुए कहा कि जनपद गौतम बुद्ध नगर का किसान और युवा इस बात से अनभिज्ञ है कि स्थानीय जनप्रतिनिधि क्षेत्र की समस्याओं को शासन और सरकार की नजरों में कितना ला रहे हैं ? कोई यह भी नहीं जानता कि किसानों और युवा बेरोजगारों के मुद्दों के निस्तारण न होने की वजह से किसानों में पनप रहा रोष भविष्य में क्या गुल खिलाएगा ? लेकिन डंके की चोट पर इतना जरूर कहा जा सकता है कि सरकार के अधीन कार्यरत प्राधिकरण के अधिकारियों की नकारात्मक भूमिका आगामी किसी भी नतीजे के लिए पूरी तरह जिम्मेदार होगी। शासन और प्रशासन को समय रहते सावधान करना चाहूंगा कि किसान और गरीब के सीने से निकली हुई "आह" अच्छी नहीं होती।

