![]() |
| प्रतीकात्मक फोटो |
नगर निगम गाजियाबाद में ठेका देने में कंपनी को फायदा पहुंचाने का खेल सामने आया है। पुरानी सोडियम लाइटों को बदलकर शहर में 50 हजार एलईडी स्ट्रीट लाइट लगाने के लिए व्हाइट प्लाकार्ड नाम की कंपनी को गुपचुप 32 करोड़ का फायदा पहुंचाया गया। अप्रैल 2016 में दिए गए इस ठेके से पहले न तो एस्टिमेट तैयार कराया गया और न ही टेंडर के मानकों को पूरा किया गया। टेंडर प्रक्रिया से दूसरी कंपनियों को बाहर करने के लिए निगम के तत्कालीन अधिकारियों ने एलईडी लाइटों में जापान की एक कंपनी की चिप लगाए जाने की शर्त जोड़ दी थी। इस शर्त के चलते अफसरों ने अपनी चहेती फर्म को ठेका दिला दिया। अब भारतीय लेखा परीक्षा और लेखा विभाग की ओर से किए गए ऑडिट में यह मामला पकड़ में आया है। ऐसे में निगम के तत्कालीन अफसरों की मुश्किलें बढ़ सकती हैं।
भारतीय लेखा परीक्षा और लेखा विभाग की ऑडिट रिपोर्ट के मुताबिक पीपीपी मॉडल पर एलईडी स्ट्रीट लाइटों को लगाने का ठेका देने से पहले आगणन (एस्टिमेट) भी तैयार नहीं कराया गया। इसके बिना किस आधार पर निगम ने जमानत राशि के तौर पर 50 लाख रुपये का निर्धारण किया, इसका भी फाइल में कोई उल्लेख नहीं है। स्ट्रीट लाइट लगाने का ठेका देने के लिए शर्तों में बदलाव कर जापान की कंपनी नीचिया की चिप अनिवार्य कर दी गई। ऑडिट विभाग ने आपत्ति जताई है कि इस अनावश्यक शर्त को लगाने से टेंडर प्रक्रिया में प्रतिस्पर्धा ही खत्म हो गई। यह शर्त न होती तो निविदा प्रक्रिया में कई और भी फर्म हिस्सा लेतीं और लाइटों की दरें और कम हो जाती। यही नहीं पीडब्ल्यूडी के शेड्यूल रेट से ज्यादा दरों पर लाइटें लगाने का ठेका दिया गया। ऑडिट रिपोर्ट में इस पर आपत्ति जताते हुए कहा गया है कि इसका संज्ञान निगम की ओर से अगर लिया गया तो स्वीकृति क्यों दे दी गई। ऑडिट विभाग ने इस कंपनी को ज्यादा दरों पर ठेका देकर करीब 32 करोड़ रुपये का फायदा पहुंचाने का मामला पकड़ा है। इसके अलावा दर्जन भर से ज्यादा बिंदुओं पर आपत्तियां लगाकर ऑडिट विभाग ने नगर निगम के अधिकारियों से जवाब मांगा है।
गाजियाबाद नगर निगम ने एलईडी स्ट्रीट लाइटों को बदलने का अनुबंध का ड्राफ्ट तैयार किया तो उसमें नगर निगम और ठेका लेने वाली कंपनी व्हाइट प्लाकार्ड के अलावा पश्चिमांचल विद्युत वितरण निगम और यूडीडी के सचिव को भी पक्षकार बनाया गया था। नियमों के मुताबिक चारों पक्षों के हस्ताक्षर इस अनुबंध पर होने चाहिए थे, लेकिन अनुबंध पत्र पर सिर्फ नगर निगम और कंपनी के हस्ताक्षर कराए गए। विद्युत निगम व यूडीडी के अधिकारियों के हस्ताक्षर ही नहीं कराए गए। इस पर भी निगम अफसर अब घिर गए हैं।
प्राकलन ही नहीं बना तो सालाना भुगतान का आधार कैसे बना
निगम द्वारा शहर में एलईडी स्ट्रीट लाइटें पीपीपी मॉडल पर लगाई गई हैं। ऑडिट विभाग ने पूछा है कि इस काम का एस्टिमेट ही नहीं बनाया गया, यानी खर्च का आकलन ही नहीं हुआ तो फिर कंपनी को भुगतान का आधार कैसे बनाया गया। बता दें कि निगम ने एलईडी लाइटों से सालाना होने वाली बिजली बिल की बचत का 70 फीसदी हिस्सा कंपनी को और 30 फीसदी हिस्सा नगर निगम को दिए जाने का आधार बनाया था। यानी अगर सालाना 10 करोड़ रुपये के बिजली बिल की बचत हुई तो कंपनी को सात करोड़ रुपये मिलते, जबकि निगम को महज तीन करोड़ का फायदा होता।
क्या था मामला
गाजियाबाद नगर निगम के पांचों जोन में 400 वाट की हाईमास्ट व सेमी हाईमास्ट लाइटों को बदलकर 120 वाट की एलईडी, 250 वाट की सोडियम फिटिंग की जगह 80 वाट की एलईडी लाइट, 150 वाट की सोडियम की जगह 65 वाट की एलईडी लाइट, 70 वाट सोडियम की जगह 30 वाट एलईडी लाइट और 40 वाट ट्यूबलाइट की जगह 18 वाट की एलईडी लाइट पीपीपी मॉडल पर लगानी थीं। कंपनी को सात साल तक इन लाइटों की मरम्मत व रखरखाव भी करना था। पूर्व महापौर अशु वर्मा और तत्कालीन नगर आयुक्त अब्दुल समद के कार्यकाल में दिए गए इस ठेके के बाद विजयनगर जोन से इस कार्य का भव्य शुभारंभ किया गया था। हालांकि बीच में ही कंपनी ने काम छोड़ दिया था, लाइटों की मरम्मत भी नहीं की। इसके बाद नगर निगम सदन ने कंपनी को ब्लैक लिस्ट किए जाने का प्रस्ताव पास किया था। नगर आयुक्त ने कहा कि ऑडिट आपत्ति का मामला अभी संज्ञान में नहीं है, रिपोर्ट मिलने पर आपत्तियों का निस्तारण कराया जाएगा।
