गगोल गांव की तपोभूमि के सरोवर स्नान से होती है सारी मनोकामनाएं पूर्ण
24x7 ग़ाज़ियाबाद न्यूज़- प्रमोद गर्ग
मेरठ जनपद के परतापुर थाना क्षेत्र में गगोल गांव के जंगल में महर्षि विश्वामित्र की तपोभूमि है। मान्यता है कि ऋषि विश्वामित्र की तपोभूमि के सरोवर में स्नान से सभी मनोकामना पूर्ण होती है एवं दाद खाज खुजली जैसे चर्म रोग दूर हो जाते हैं।
मेरठ-दिल्ली मार्ग पर मेरठ में प्रवेश करते ही परतापुर से एक मार्ग कताई मिल व परतापुर हवाई पट्टी की ओर जाता है, जो आगे खरखौदा गाँव के लिए चला जाता है। इसी मार्ग पर परतापुर फ्लाईओवर से करीब पाँच किलोमीटर पूर्व दिशा में स्थित है गगोल तीर्थ, यानी विश्वामित्र का आश्रम। इस आश्रम का पौराणिक महत्व है। ऋषि विश्वामित्र के आग्रह पर यहां राम-लक्ष्मण के कुछ समय तक रहने का भी दावा किया जाता है।
पौराणिक महत्व वाले इस तीर्थ का भले ही इतिहास गौरवमयी है लेकिन आज यह तीर्थस्थल उपेक्षा का शिकार है। आइए इस तीर्थ स्थल पर डालते हैं एक नजर- रामायण के अनुसार, दण्डकारण्य में विश्वामित्र-भारद्वाज आदि महर्षियों के आश्रम-तपस्थली एवं प्रयोगशालाएं थीं। महत्वपूर्ण स्थल होने के कारण रावण के गुप्तचर एवं सेना इन पर विशेष निगरानी रखते थे। इस प्रकार मेरठ से लेकर हापुड़-गाजियाबाद-शहादरा-बागपत आदि को समाहित करता हुआ यह दण्डकारण्य अथवा जनस्थान यमुना से लेकर गंगा तक विस्तृत भू-भाग में फैला हुआ था।
इस जनस्थान में ऋषियों एवं नवीन खोजों की निगरानी के लिए खर-दूषण-ताड़का-सुबाहु आदि महाभट्ट योद्धा निवास करते थे। कहा जाता है कि खर-दूषण का निवास होने के कारण ही समीपस्थ गाव का नाम खरखौदा पड़ गया। विश्वामित्र अपने यज्ञ की रक्षार्थ दशरथ से राम-लक्ष्मण को मागकर यहीं पर लाये थे। राम ने अपने तीर से भू-गर्भ से जल का स्त्रोत (किवदंतियों में गंगा) प्रकट किया। इसलिए इस तीर्थ एवं गाव का नाम गंगलो (गंगा व जल - गंगोल) प्रसिद्ध हुआ।
गंधक के पानी का प्राकृतिक स्त्रोत, आज भी है यज्ञ वेदी।
गगोल गांव स्थित राजऋषि विश्वामित्र का आश्रम उनके तप की शक्ति का आज भी गवाह है। यहां स्थित विशाल कुंड में गंधक के पानी का प्राकृतिक स्त्रोत आज भी मौजूद है। जनश्रुतियों के मुताबिक, इस कुंड के पानी से चर्मरोग दूर हो जाया करते थे। कुंड में ही राजऋषि की यज्ञवेदी भी मौजूद है। जहां राजऋषि के यज्ञ को संपन्न कराने के लिए भगवान श्रीराम भाई लक्ष्मण के साथ यहां लंबे समय तक रहे तथा असुरों का संहार भी किया। यज्ञ संपन्न कराकर यहीं से दोनों भाई राजर्षि के साथ सीता स्वयंवर के लिए मिथिला गए थे।
बताया जाता है कि आश्रम का विकास कराने वाले खिचड़ीवाले बाबा ने इसी कुंड के पानी से खिचड़ी बनाकर चमत्कार किया था। यहां वर्तमान में भगवान श्रीराम, लक्ष्मण, राजर्षि विश्वामित्र, शिव परिवार, बालाजी, शेरावाली माता आदि के मंदिर हैं। पिंडदान हेतु इसे दूसरा गया तीर्थ माना जाता है। इसीलिए पितृ उद्धार हेतु यहा लोग दूर-दूर से पिण्ड दान करने आते हैं।
आज भी ऋषि विश्वामित्र के नाम है आश्रम की 99 बीघा भूमि आश्रम के पास 99 बीघा भूमि थी। यह भूमि आज भी राजऋषि विश्वामित्र के नाम ही खसरा खतौनी व अन्य दस्तावेजों में दर्ज है। इस भूमि पर भूमाफिया की भी नजर गड़ी है। लगभग 30 बीघा से ज्यादा भूमि पर माफिया काबिज है।

