कोरोना संकट में फीस माफी, किसान व कामगार को सहायता पैकेज और खुदरा व्यापारी को लॉक डाउन में राहत देने के संबंध में रुख स्पष्ट करे सरकार ।
जरूरी पहलुओं पर फोकस करें देश के मीडिया हाउस । - कर्मवीर नागर प्रमुख
कोरोना संकट में फीस माफी, किसान व कामगार को सहायता पैकेज और खुदरा व्यापारी को लॉक डाउन में राहत देने के संबंध में रुख स्पष्ट करे सरकार ।
जरूरी पहलुओं पर फोकस करें देश के मीडिया हाउस ।
- कर्मवीर नागर प्रमुख
देश और दुनिया को छदम युद्ध के आगोश में लेने वाले कोरोना संकट की इस घड़ी में चौथा स्तंभ कहे जाने वाले मीडिया को कोरोना संकट के साइड इफेक्ट से से देश में उत्पन्न हो रहे नए आर्थिक संकटों जैसे पहलुओं पर भी सरकार के ध्यानाकर्षण हेतु फोकस करना इस वक्त की सबसे बड़ी जरूरत है । हालांकि आम जनता को पल-पल जागरूक करने के लिए मीडिया रिपोर्टर अपने जीवन की परवाह किए बगैर घर में बंद लोगों को देश और दुनिया की तस्वीरें दिखाने का हर संभव प्रयास कर रहे हैं । खबरों की कवरेज करने वाले मीडिया के बंधुओं का काम इस वक्त युद्ध के मैदान में डटे किसी योद्धा से कम का नहीं है ।
लेकिन इस संकट के वक्त कोरोना पर की जा रही खबरों की कवरेज के साथ साथ कुछ ऐसे जरूरी पहलुओं पर भी सत्ता और सरकार का ध्यान आकर्षण इस वक्त की दूसरी सबसे बड़ी जरूरत है जो देश के आर्थिक हालातों और आम आदमी से जुड़े हुए हैं। ताकि इन पहलुओं पर सरकार अपना रुख स्पष्ट कर सकें। जिनको नजरअंदाज करना आने वाले वक्त में देश को आर्थिक संकट से जूझने के लिए मजबूर कर सकता है ।
अगर इस वक्त के इन जरूरी पहलुओं पर नजर डालें तो पहले से ही दयनीय स्थिति से गुजर रहा इस देश का किसान और कामगार इस समय लाचार और बेबस नजर आ रहा है । मौसम की मार ने किसानों की गेहूं की फसल को बर्बाद कर दिया है। लॉक डाउन की वजह से बची खुची फसल को घर तक लाना मुश्किल भरा काम हो गया है। गन्ना किसानों को मिल मालिकों द्वारा वित्तीय वर्ष 2019 - 20 का बकाया भुगतान आज तक भी न किए जाने की खबरें जगजाहिर है । प्रभावित किसानों का कहना है है कि दिल्ली से अति निकट उत्तर प्रदेश के हापुड़ जनपद में स्थित सिंभावली शुगर मिल और बृजनाथपुर शुगर मिल के मालिकों द्वारा गन्ना किसानों की विगत वित्तीय वर्ष की लगभग 200 करोड़ रुपए की बकाया धनराशि आज तक भुगतान नहीं की है। ऐसे ही हालात अन्य शुगर शुगर मिलों और गन्ना किसानों के हैं । गन्ना किसानों का आरोप है कि सिंभावली और बृजनाथपुर शुगर मिल मालिक के विरुद्ध एफ आई आर दर्ज करने और रिकवरी के निर्देश जारी करने के बाद भी आज तक कोई कार्रवाई इसलिए नहीं हो सकी है क्योंकि उक्त शुगर मिलों का मालिक अन्य प्रदेश के एक मुख्यमंत्री का रिश्ते में दामाद हैं। लाचार किसान इस वक्त भी अपना गन्ना बिना भुगतान के मिल मालिकों के दरवाजे उड़ेलने के लिए विवश है ।
इसी तरह प्रवासी कामगारों के हालत भी बद से बदतर है । रोजगार की तलाश में आए अपने पैत्रक जनपद और प्रदेशों से दूर रहकर गुजर-बसर करने वाले प्रवासी कामगारों का जीवन इस समय पूरी तरह तबाह हो चुका है। बिना सोशल डिस्टेंसिग के कमरे में बंद रहने के लिए मजबूर और सुबह शाम भरपेट भोजन के इंतजार में टकटकी लगाने वाले इन कामगारों और इनके छोटे-छोटे दूधमुहे मासूम बच्चों का हाल ए बयां और जीवन की सच्चाई दिखाकर देश का मीडिया सरकार को आईना दिखाने का काम करें और इनके लिए भी ऐसी ही समुचित व्यवस्था सरकार द्वारा किए जाने के कारगर कदम उठाए जाने की आवाज सरकार के कानों तक पहुंचाई जाए जैसे राजस्थान के कोटा शहर में फंसे पढ़ने वाले बच्चों को परिवारों तक पहुंचाने की दिशा में सरकार ने कारगर कदम उठाकर सराहनीय काम किया है।
देश में स्कूली बच्चों से जुड़ा एक और अहम मुद्दा नामचीन निजी शिक्षण संस्थाओं द्वारा लॉक डाउन के वक्त फीस माफ न किया जाना है । जिसके लिए देश के कोने-कोने से आवाज उठने के बाद भी निजी शिक्षण संस्थान के प्रबंध तंत्र चुप्पी साधे हुए हैं । लेकिन नामचीन निजी शिक्षण संस्थाओं के समक्ष देश और प्रदेश की सरकारों द्वारा आत्मसमर्पण किया जाना अभिभावकों की समझ से परे है। देश के मानव संसाधन मंत्री द्वारा निजी शिक्षण संस्थाओं से फीस न लेने की मार्मिक अपील करना पूरी तरह से निंदनीय कृत्य है। अकूत संपत्ति का साम्राज्य खड़ा करने वाली नामचीन निजी शिक्षण संस्थाओं के लिए भी संकट की घड़ी में इसे अमानवीय कृत्य करार देना अतिश्योक्ति नहीं होगा! हम ऐसी कुछ निजी शिक्षण संस्थाओं का धन्यवाद धन्यवाद करते हैं जो मानवता के नाते इस वक्त बच्चों की फीस माफी के लिए आगे आ आकर खुली घोषणाएं कर रही हैं जिनकी वित्तीय स्थिति भी बहुत ज्यादा मजबूत नहीं है । लेकिन नामचीन निजी शिक्षण संस्थाओं द्वारा आए दिन फीस जमा करने के लिए अभिभावकों को संदेश भेजना मानो कि सरकार की लाचारी और बेबसी को दर्शा रहा है। जब दिल्ली प्रदेश के मुख्यमंत्री निजी शिक्षण संस्थाओं को फीस माफी के लिए आदेश पारित कर सकते हैं तो केंद्रीय संसाधन मंत्री द्वारा स्कूलों से मार्मिक अपील किया जाना शर्मिंदगी भरा प्रतीत होता है। मीडिया को देश की ऐसी नामचीन शिक्षण संस्थाओं की खुलेआम पोल खोलनी चाहिए जिनका संकट की घड़ी में देश की सरकार और अभिभावकों को किसी भी रूप में योगदान नगण्य है ! ऐसी संस्थाओं एवं संस्थाओं के संचालकों की जांच आयकर के रडार पर लाई जानी चाहिए ! मीडिया घरानों को खबरों की सुर्खियां बनाकर सरकार तक संदेश पहुंचाया जाना चाहिए ।
मीडिया जगत खबरों की सुर्खियों के जरिए सरकार के कानों तक इस बात को भी पहुंचाने का काम करें कि सरकार द्वारा बड़ी बड़ी विदेशी कंपनियों द्वारा संचालित ऑनलाइन व्यापार के लिए लॉक डाउन में ढील देने का आदेश देने का निर्णय देश के उन खुदरा व्यापारियों को आहत करने वाला है जो पहले से ही आर्थिक मंदी की मार झेल रहे हैं । जिन की दुकानों में रखा स्टॉक खराब होने और आउटडेटेड होने की स्थिति में है । मीडिया को सरकार तक आवाज पहुंचानी चाहिए ताकि लॉक डाउन के नियमों के अनुपालन कराते हुए ऐसे खुदरा व्यापारियों के लिए भी लॉक डाउन में रियायत का रास्ता अख्तियार किया जा सके।
मीडिया द्वारा विशेष तौर पर उठाने का एक मुद्दा यह भी है जिस संबंध में पिछले दिनों अखबार में प्रकाशित एक आर्टिकल के जरिए मैंने भी मांग की थी कि कोरोना संकट से सबक लेकर सरकार को अपनी योजनाओं में कायाकल्प करना चाहिए । आज अखबारों में प्रकाशित देश के माननीय प्रधानमंत्री का यह बयान कि "वक्त की मांग है कोरोना काल को अवसर मानकर बिजनेस और कार्यशैली के ऐसे मॉडलों पर विचार किया जाए जिन्हें अपनाना सरल और सहज हो" इस बात की स्वीकारोक्ति है कि योजनाओं में कायाकल्प इस वक्त की जरूरत है । पूरे देश ने इस वक्त सरकारी महकमों के कर्मियों को कोरोना से युद्ध करते हुए साक्षात देखा है । इसलिए मीडिया घरानों को निजी करण के विरोध में आवाज बुलंद करनी चाहिए। सरकार से निजीकरण की तरफ बढ़ते हुए कदम रोकने की मेरे द्वारा की गई मांग के तुरंत बाद ज़ी न्यूज़ टीवी चैनल के श्री सुधीर चौधरी ने भी वर्तमान परिस्थितियों का संज्ञान लेकर निजीकरण के विरोध में टीवी चैनल एक स्टोरी के जरिए सरकार को संदेश दिया था । कहने का तात्पर्य यह है कि देश को इस वक्त की जरूरतों के हिसाब से और कोरोना संकट से सीख लेते हुए देश की सरकार को नई दिशा दशा तय करनी होगी तभी कोरोना संकट के बाद देश आर्थिक संकट जैसे मोर्चे पर विजय हासिल कर सकेगा । देश के अहम पहलुओं को सरकार के कानों तक पहुंचाने का काम वर्तमान परिस्थितियों में केवल चौथा स्तंभ कहे जाने वाले देश के मीडिया को ही करना होगा ।
जरूरी पहलुओं पर फोकस करें देश के मीडिया हाउस ।
- कर्मवीर नागर प्रमुख
देश और दुनिया को छदम युद्ध के आगोश में लेने वाले कोरोना संकट की इस घड़ी में चौथा स्तंभ कहे जाने वाले मीडिया को कोरोना संकट के साइड इफेक्ट से से देश में उत्पन्न हो रहे नए आर्थिक संकटों जैसे पहलुओं पर भी सरकार के ध्यानाकर्षण हेतु फोकस करना इस वक्त की सबसे बड़ी जरूरत है । हालांकि आम जनता को पल-पल जागरूक करने के लिए मीडिया रिपोर्टर अपने जीवन की परवाह किए बगैर घर में बंद लोगों को देश और दुनिया की तस्वीरें दिखाने का हर संभव प्रयास कर रहे हैं । खबरों की कवरेज करने वाले मीडिया के बंधुओं का काम इस वक्त युद्ध के मैदान में डटे किसी योद्धा से कम का नहीं है ।
लेकिन इस संकट के वक्त कोरोना पर की जा रही खबरों की कवरेज के साथ साथ कुछ ऐसे जरूरी पहलुओं पर भी सत्ता और सरकार का ध्यान आकर्षण इस वक्त की दूसरी सबसे बड़ी जरूरत है जो देश के आर्थिक हालातों और आम आदमी से जुड़े हुए हैं। ताकि इन पहलुओं पर सरकार अपना रुख स्पष्ट कर सकें। जिनको नजरअंदाज करना आने वाले वक्त में देश को आर्थिक संकट से जूझने के लिए मजबूर कर सकता है ।
अगर इस वक्त के इन जरूरी पहलुओं पर नजर डालें तो पहले से ही दयनीय स्थिति से गुजर रहा इस देश का किसान और कामगार इस समय लाचार और बेबस नजर आ रहा है । मौसम की मार ने किसानों की गेहूं की फसल को बर्बाद कर दिया है। लॉक डाउन की वजह से बची खुची फसल को घर तक लाना मुश्किल भरा काम हो गया है। गन्ना किसानों को मिल मालिकों द्वारा वित्तीय वर्ष 2019 - 20 का बकाया भुगतान आज तक भी न किए जाने की खबरें जगजाहिर है । प्रभावित किसानों का कहना है है कि दिल्ली से अति निकट उत्तर प्रदेश के हापुड़ जनपद में स्थित सिंभावली शुगर मिल और बृजनाथपुर शुगर मिल के मालिकों द्वारा गन्ना किसानों की विगत वित्तीय वर्ष की लगभग 200 करोड़ रुपए की बकाया धनराशि आज तक भुगतान नहीं की है। ऐसे ही हालात अन्य शुगर शुगर मिलों और गन्ना किसानों के हैं । गन्ना किसानों का आरोप है कि सिंभावली और बृजनाथपुर शुगर मिल मालिक के विरुद्ध एफ आई आर दर्ज करने और रिकवरी के निर्देश जारी करने के बाद भी आज तक कोई कार्रवाई इसलिए नहीं हो सकी है क्योंकि उक्त शुगर मिलों का मालिक अन्य प्रदेश के एक मुख्यमंत्री का रिश्ते में दामाद हैं। लाचार किसान इस वक्त भी अपना गन्ना बिना भुगतान के मिल मालिकों के दरवाजे उड़ेलने के लिए विवश है ।
इसी तरह प्रवासी कामगारों के हालत भी बद से बदतर है । रोजगार की तलाश में आए अपने पैत्रक जनपद और प्रदेशों से दूर रहकर गुजर-बसर करने वाले प्रवासी कामगारों का जीवन इस समय पूरी तरह तबाह हो चुका है। बिना सोशल डिस्टेंसिग के कमरे में बंद रहने के लिए मजबूर और सुबह शाम भरपेट भोजन के इंतजार में टकटकी लगाने वाले इन कामगारों और इनके छोटे-छोटे दूधमुहे मासूम बच्चों का हाल ए बयां और जीवन की सच्चाई दिखाकर देश का मीडिया सरकार को आईना दिखाने का काम करें और इनके लिए भी ऐसी ही समुचित व्यवस्था सरकार द्वारा किए जाने के कारगर कदम उठाए जाने की आवाज सरकार के कानों तक पहुंचाई जाए जैसे राजस्थान के कोटा शहर में फंसे पढ़ने वाले बच्चों को परिवारों तक पहुंचाने की दिशा में सरकार ने कारगर कदम उठाकर सराहनीय काम किया है।
देश में स्कूली बच्चों से जुड़ा एक और अहम मुद्दा नामचीन निजी शिक्षण संस्थाओं द्वारा लॉक डाउन के वक्त फीस माफ न किया जाना है । जिसके लिए देश के कोने-कोने से आवाज उठने के बाद भी निजी शिक्षण संस्थान के प्रबंध तंत्र चुप्पी साधे हुए हैं । लेकिन नामचीन निजी शिक्षण संस्थाओं के समक्ष देश और प्रदेश की सरकारों द्वारा आत्मसमर्पण किया जाना अभिभावकों की समझ से परे है। देश के मानव संसाधन मंत्री द्वारा निजी शिक्षण संस्थाओं से फीस न लेने की मार्मिक अपील करना पूरी तरह से निंदनीय कृत्य है। अकूत संपत्ति का साम्राज्य खड़ा करने वाली नामचीन निजी शिक्षण संस्थाओं के लिए भी संकट की घड़ी में इसे अमानवीय कृत्य करार देना अतिश्योक्ति नहीं होगा! हम ऐसी कुछ निजी शिक्षण संस्थाओं का धन्यवाद धन्यवाद करते हैं जो मानवता के नाते इस वक्त बच्चों की फीस माफी के लिए आगे आ आकर खुली घोषणाएं कर रही हैं जिनकी वित्तीय स्थिति भी बहुत ज्यादा मजबूत नहीं है । लेकिन नामचीन निजी शिक्षण संस्थाओं द्वारा आए दिन फीस जमा करने के लिए अभिभावकों को संदेश भेजना मानो कि सरकार की लाचारी और बेबसी को दर्शा रहा है। जब दिल्ली प्रदेश के मुख्यमंत्री निजी शिक्षण संस्थाओं को फीस माफी के लिए आदेश पारित कर सकते हैं तो केंद्रीय संसाधन मंत्री द्वारा स्कूलों से मार्मिक अपील किया जाना शर्मिंदगी भरा प्रतीत होता है। मीडिया को देश की ऐसी नामचीन शिक्षण संस्थाओं की खुलेआम पोल खोलनी चाहिए जिनका संकट की घड़ी में देश की सरकार और अभिभावकों को किसी भी रूप में योगदान नगण्य है ! ऐसी संस्थाओं एवं संस्थाओं के संचालकों की जांच आयकर के रडार पर लाई जानी चाहिए ! मीडिया घरानों को खबरों की सुर्खियां बनाकर सरकार तक संदेश पहुंचाया जाना चाहिए ।
मीडिया जगत खबरों की सुर्खियों के जरिए सरकार के कानों तक इस बात को भी पहुंचाने का काम करें कि सरकार द्वारा बड़ी बड़ी विदेशी कंपनियों द्वारा संचालित ऑनलाइन व्यापार के लिए लॉक डाउन में ढील देने का आदेश देने का निर्णय देश के उन खुदरा व्यापारियों को आहत करने वाला है जो पहले से ही आर्थिक मंदी की मार झेल रहे हैं । जिन की दुकानों में रखा स्टॉक खराब होने और आउटडेटेड होने की स्थिति में है । मीडिया को सरकार तक आवाज पहुंचानी चाहिए ताकि लॉक डाउन के नियमों के अनुपालन कराते हुए ऐसे खुदरा व्यापारियों के लिए भी लॉक डाउन में रियायत का रास्ता अख्तियार किया जा सके।
मीडिया द्वारा विशेष तौर पर उठाने का एक मुद्दा यह भी है जिस संबंध में पिछले दिनों अखबार में प्रकाशित एक आर्टिकल के जरिए मैंने भी मांग की थी कि कोरोना संकट से सबक लेकर सरकार को अपनी योजनाओं में कायाकल्प करना चाहिए । आज अखबारों में प्रकाशित देश के माननीय प्रधानमंत्री का यह बयान कि "वक्त की मांग है कोरोना काल को अवसर मानकर बिजनेस और कार्यशैली के ऐसे मॉडलों पर विचार किया जाए जिन्हें अपनाना सरल और सहज हो" इस बात की स्वीकारोक्ति है कि योजनाओं में कायाकल्प इस वक्त की जरूरत है । पूरे देश ने इस वक्त सरकारी महकमों के कर्मियों को कोरोना से युद्ध करते हुए साक्षात देखा है । इसलिए मीडिया घरानों को निजी करण के विरोध में आवाज बुलंद करनी चाहिए। सरकार से निजीकरण की तरफ बढ़ते हुए कदम रोकने की मेरे द्वारा की गई मांग के तुरंत बाद ज़ी न्यूज़ टीवी चैनल के श्री सुधीर चौधरी ने भी वर्तमान परिस्थितियों का संज्ञान लेकर निजीकरण के विरोध में टीवी चैनल एक स्टोरी के जरिए सरकार को संदेश दिया था । कहने का तात्पर्य यह है कि देश को इस वक्त की जरूरतों के हिसाब से और कोरोना संकट से सीख लेते हुए देश की सरकार को नई दिशा दशा तय करनी होगी तभी कोरोना संकट के बाद देश आर्थिक संकट जैसे मोर्चे पर विजय हासिल कर सकेगा । देश के अहम पहलुओं को सरकार के कानों तक पहुंचाने का काम वर्तमान परिस्थितियों में केवल चौथा स्तंभ कहे जाने वाले देश के मीडिया को ही करना होगा ।

