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इस तरह के किसान बिल को अमेरिका और यूरोप में कई दशकों पहले लागू किया गया था।


जो बिल आज नरेंद्र मोदी किसानों की भलाई के नाम पर लागू कर चुके हैं. अमेरिका और यूरोप इस तरह के बिल को कई दशक पहले लागू कर चुके हैं !


अमेरिका का उदाहरण प्रस्तुत करता हूँ.


अमेरिका के उत्तर में इंकॉन्सिन राज्य है जिसकी आबादी 58 लाख है. उद्योगिक तौर पर राज्य इतना विकसित नही है. ग्रामीण क्षेत्रों में आज भी अधिकतर लोग कृषि पर निर्भर हैं. 


इंसिन्सिन राज्य 2011 से किसानों की आय में 50% की गिरावट दर्ज की गई है. 2017 में आर्थिक तंगी और कर्ज के कारण 915 किसानों ने खुदकुशी कर अपनी जीवन यात्रा समाप्त कर दी.


यूएस डिपार्टमेंट ऑफ एग्रीकल्चर के शोध से पता चला, पूरे अमेरिका में 2013 से किसानों की आमदनी तेजी से घट रही है. 50% से अधिक किसान कॉरपोरेट कृषि अर्थव्यवस्था के कारण भयंकर आर्थिक संकट और कर्ज से जूझ रहे हैं.


डेमोक्रेटिक पार्टी हो या रिपब्लिकन पार्टी, दोनों की कॉरपोरेट कृषि नीतियों ने कृषि क्षेत्र को पूरी तरह कुछ मुट्ठी भर कॉरपोरेट कंपनियों के नियंत्रण में कर दिया है. मुश्किल से 8 या 10 कंपनी अमेरिका के 80% कृषि उत्पादन को नियंत्रित करती हैं.


कर्ज़ और आर्थिक संकट के दो प्रमुख कारण हैं.


1 - कॉरपोरेट जगत किसानों को शुरू शुरू में अच्छे दाम देते थे. लेकिन समय बीतने के बाद कम मूल्य चुकाकर फसल खरीदते हैं. कॉरपोरेट कंपनी किसानों को ब्लैकमेल करते हैं, फसल कम दाम पर नही दी तो तुम्हारी फ़सक खराब हो जाएगी. बड़े बड़े गोदाम उद्योग जगत के पास है, किसानों के पास अनाज भंडारण की व्यवस्था नही है.


2 - जो कंपनियां फसल खरीदती हैं अगर वो बंद हो जाती हैं, या बैंक का कर्ज डकार कर खुद को दिवालियापन घोषित कर भाग जाती हैं. ऐसे हालात में किसान जो फसल खेत मे बोया है उसे वह बेच नही पाते. और नई कंपनी मौके का लाभ उठाकर बहुत कम कीमत पर अनाज खरीदती है.


1991 के उदारीकरण के बाद से अब तक 10 लाख किसान भारत में आत्महत्या कर चुके हैं, लेकिन आज तक एक भी कर्ज़दार अरबपति आत्महत्या नही किया ?

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