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किसानों की मांगे ठुकराना प्राधिकरण अधिकारियों की तानाशाही का प्रमाण।


प्राधिकरण अधिकारियों का रवैया अंग्रेज शासक से कम नहीं।
देश को आजादी दिलाने वालों के वंशज किसानों से टकराव ठीक नहीं, पुनर्विचार करें मांगों पर।  - कर्मवीर नागर प्रमुख

किसानों की मांगे ठुकराना प्राधिकरण अधिकारियों की तानाशाही का प्रमाण

जनपद गौतम बुद्ध नगर स्थित  प्राधिकरणों के अधिकारियों ने अपनी मनमानी और तानाशाही  को एक बार फिर प्रमाणित कर दिया है। लंबे अरसे से आंदोलनरत जनपद गौतमबुध नगर के किसानों ने भी 2 मार्च 2020 को माननीय मुख्यमंत्री महोदय के नोएडा रात्रि विश्राम के दौरान अपनी मांगों से माननीय मुख्यमंत्री को अवगत कराया था। जिसका संज्ञान लेते हुए माननीय मुख्यमंत्री जी की उपस्थिति में नोएडा में हुई बैठक में किसानों के प्रतिनिधि के रूप में जनपद गौतम बुद्ध नगर के स्थानीय जनप्रतिनिधि शामिल हुए थे। इस बैठक में किसानों की तरफ से दिया गया 5 सूत्री मांगों का एक पत्र बैठक में किसान प्रतिनिधियों रूप में उपस्थित स्थानीय जनप्रतिनिधियों की तरफ से मुख्यमंत्री के समक्ष प्रस्तुत किया गया था। इन पांच मांगों में से प्रथम मांग थी कि आबादी व्यवस्थापन नियमावली 2011 की कट ऑफ डेट 30 जून 2011 को आगे बढ़ाते हुए आबादी "जहां है जैसी है" के आधार पर छोड़ी जाए। दूसरी मांग सन 2002 से 2014 तक की भूमि अधिग्रहण की भांति 64. 07 प्रतिशत अतिरिक्त प्रति कर का भुगतान 1997 से 2002 तक किए गए भूमि अधिग्रहण के  प्रकरण में भी किया जाए। तीसरी मांग में सभी किसानों को अर्जित भूमि की एवज में 10 फ़ीसदी विकसित भूखंड देने की मांग की गई थी। आमतौर पर यह तीनों मांग ग्रेटर नोएडा प्राधिकरण क्षेत्र के किसानों से संबंधित थी। जिनके लिए किसान लंबे अरसे से भीषण सर्दी, गर्मी और बरसात के मौसम में भी ग्रेटर नोएडा प्राधिकरण के सामने धरना प्रदर्शन करते नजर आते थे। 
किसानों की मांगे ठुकराना प्राधिकरण अधिकारियों की तानाशाही का प्रमाण

      प्राधिकरण अधिकारियों ने किसान प्रतिनिधियों द्वारा उठाई गई किसानों की प्रथम मांग के परिपेक्ष में अपना चालाकी भरा पक्ष रखते हुए कहा कि "आबादी जहां है जैसी है के आधार पर छोड़ा जाना उचित नहीं है। इससे प्राधिकरण द्वारा अर्जित भूमि पर अवैध निर्माण को बढ़ावा मिलेगा। अतः आबादी अवस्थापन हेतु 30 जून 2011 की कट ऑफ डेट के आधार पर ही लागू किया जाना उचित होगा ।" इसी तरह किसानों की 1997 से 2002 तक अर्जित की गई भूमि के मामलों में 64.7 प्रतिशत अतिरिक्त प्रतिकर भुगतान की मांग के संबंध में प्राधिकरण द्वारा अपना पक्ष रखते हुए कहा गया कि "इसे 1997 से लागू करने के संबंध में न तो न्यायालय के आदेश हैं और न ही इस प्रकार के अतिरिक्त भुगतान का कोई औचित्य है। प्राधिकरण के अधिकारियों ने अपना पक्ष रखते हुए कहा कि इससे प्राधिकरणों पर अनावश्यक व्यय भार बढ़ेगा।" प्राधिकरण ने 10% आबादी प्लाट की मांग के संबंध में अपना पक्ष रखते हुए कहा कि "जहां तक 10% आबादी प्लाट का प्रकरण है माननीय उच्चतम न्यायालय के निर्णय अनुसार यह प्लाट उन्हीं कृषकों को देय है जो न्यायालय में पक्षकार थे शेष को नहीं।"
          मुख्यमंत्री के साथ हुई इस बैठक में किसानों की पांच मांगों में से तीन मांग ग्रेटर नोएडा प्राधिकरण क्षेत्र के किसानों से संबंधित थी और नोएडा प्राधिकरण से संबंधित दो मामलों में किसानों की एकमात्र मांग यह थी कि नोएडा प्राधिकरण में 1977 से 1997 तक के किसानों को किसान कोटे के प्लाट अति शीघ्र दिए जाएं। प्राधिकरण ने इस संबंध में अपना पक्ष रखते हुए कहा कि" इस योजना में आवंटित किए जाने वाले भूखंडों की दर के निर्धारण हेतु मुख्य कार्यपालक अधिकारी यमुना प्राधिकरण के अध्यक्षता में कमेटी गठित की गई है।"दूसरा मामला गढ़ी चौखंडी स्कूल का गलत तरीके से किए गए भूमि अधिग्रहण को रद्द किए जाने से संबंधित था।

इस बैठक में किसानों की तरफ से किसान प्रतिनिधि के रूप में उपस्थित स्थानीय जनप्रतिनिधियों ने किसानों के पक्ष में अपनी तरफ से क्या तर्क प्रस्तुत किए इस संबंध में अभी तक किसी भी किसान प्रतिनिधि का कोई बयान सुनने को नहीं मिला है। इतना जरूर है कि इस बैठक के संबंध में शासन द्वारा जारी आदेश में किसानों की "जहां है जैसी है" आबादी व्यवस्थापन की मांग को सिरे से ठुकराते हुए प्राधिकरण द्वारा रखे गए पक्ष को अक्षरश स्वीकार किया गया है। इसी तरह 64.7 फ़ीसदी के अतिरिक्त प्रतिकर को 1997 से 2002 अर्जित की गई भूमि के मामले में लागू करने व अर्जित भूमि की एवज में सभी किसानों को 10 प्रतिशत विकसित भूखंड आवंटन की मांग को भी सिरे से खारिज कर दिया गया है। जबकि इस बैठक में शासन द्वारा दिए गए निर्णय की विशेष बात यह है कि नोएडा प्राधिकरण से संबंधित किसानों की मांग पर 1977 से 1997 तक के किसान को भूखंडों के आवंटन हेतु समयावधि सुनिश्चित करते हुए आदेश पारित किया गया है। और गढ़ी चौखंडी के स्कूल के गलत तरीके से किए गए अधिग्रहण को भी रद्द करने के संबंध में भी आदेश दिया गया है। अधिग्रहण करने वाले अधिकारियों के विरुद्ध भी कार्यवाही करने के आदेश दिए गए है ।
किसानों की मांगे ठुकराना प्राधिकरण अधिकारियों की तानाशाही का प्रमाण

इस निर्णय से ग्रेटर नोएडा प्राधिकरण क्षेत्र का किसान बहुत ही मायूस है और खुद को इस वक्त असहाय महसूस कर रहा है।
इस क्षेत्र के किसानों के साथ ऐसा पहली बार नहीं हुआ है बल्कि इस क्षेत्र के किसान को यदा-कदा दी गई ऑक्सीजन के अलावा आमतौर पर उत्पीड़न ही झेलना पड़ा है।
नोएडा, ग्रेटर नोएडा और यमुना प्राधिकरण की स्थापना के वक्त क्षेत्र के बाशिंदों ने अच्छी-अच्छी कल्पना के सपने संजोए थे। आज वही प्राधिकरण जनपद गौतम बुद्ध नगर के किसानों के लिए अंग्रेज शासक से कमतर नहीं है। उत्तर प्रदेश शासन द्वारा जारी किया गया यह आदेश प्राधिकरण की तानाशाही और मनमानी का प्रमाण है। लेकिन इससे भी मजेदार बात यह है कि जहां ग्रेटर नोएडा क्षेत्र के किसानों की किसी भी मांग को मानने से साफ इंकार कर दिया है वहीं दूसरी तरफ नोएडा के किसानों की मांग को मानते हुए तत्काल पूरी करने के लिए उत्तर प्रदेश शासन ने मोहर लगाकर भेज दी है।
लेकिन धन्य है ग्रेटर नोएडा क्षेत्र का किसान कि ऐसे में भी कुछ लोग नकारात्मक निर्णय के बाद में सकारात्मक नजर आ रहे हैं।कुछ अखबारों के कलमकारो ने भी इस खबर को कुछ इस तरह से पेश किया है जैसे किसानों की लाटरी खुल गई हो। कुछ लोग सोशल मीडिया पर बढ़-चढ़कर इस खबर की प्रशंसा करते नजर आ रहे हैं। न जाने किस निर्णय पर हम अपनी पीठ थपथपाए जा रहे हैं। यहां पर नोएडा के वह स्थानीय जनप्रतिनिधि जरूर धन्यवाद के पात्र हैं जो किसान प्रतिनिधि के तौर पर मुख्यमंत्री की बैठक में उपस्थित हुए थे। जिन्होंने अपने नोएडा क्षेत्र के किसानों की 1977 से 1997 तक के किसान कोटे के प्लाट की मांग को पूरा कराने में सराहनीय भूमिका अदा की है। उन्होंने किसानों के पक्ष में निर्णय करा कर प्राधिकरण के अधिकारियो को किसानों के हित में काम करने का स्पष्ट संदेश दिया है। अन्य प्राधिकरण क्षेत्रों में भी ऐसे ही संदेश की आवश्यकता है। प्राधिकरण में बैठे अंग्रेज शासक रूपी प्रशासनिक अधिकारियों को स्पष्ट कर देना चाहते हैं कि इस क्षेत्र का किसान उन्हीं वंशजों की औलाद है जो देश को आजाद कराने के लिए हंसते हंसते फांसी के फंदे पर झूल गए थे इसलिए किसानों का उत्पीड़न और किसानों पर अत्याचार करना बंद करें और किसानों की मांगों पर एक बार फिर से विचार करें।
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