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वो कौन-सी स्कीम थी, जिससे हजार-दो हजार नहीं, 32 लाख लोगों से 6380 करोड़ रुपये ठगने का आरोप है?

6 हजार करोड़ की हेराफेरी के लिए 150 से ज्यादा कंपनियां बनाई गई थीं। कंपनी के तीन प्रमोटर्स को कोर्ट ने जेल भेज दिया है।

भारत और पोंजी स्कीम का जैसे कोई पुराना नाता है। एक भूलो तो उससे बड़ा घोटाला सामने आ जाता है. खबर आई है कि ईडी यानी प्रवर्तन निदेशालय ने एग्री गोल्ड पोंजी स्कैम मामले में 3 लोगों को गिरफ्तार किया है। इसमें सैकड़ों-हजार नहीं बल्कि 32 लाख लोगों को चूना लगाए जाने का आरोप है। घोटाले की रकम 6,380 करोड़ से ज्यादा की बताई जा रही है। क्या है ये पूरा घोटाला, आइए बताते हैं।

वो कौन-सी स्कीम थी, जिससे हजार-दो हजार नहीं, 32 लाख लोगों से 6380 करोड़ रुपये ठगने का आरोप है?


150 कंपनियां खोल रखी थीं


ईडी की ओर से गिरफ्तार किए गए तीनों लोग एग्री गोल्ड पोंजी कंपनी के प्रमोटर्स हैं। बुधवार को कोर्ट ने इन्हें 14 दिनों की न्यायिक हिरासत में भेज दिया। ईडी ने ये कार्रवाई कई प्रदेशों में दर्ज मामलों के आधार पर की है. आंध्र प्रदेश, तेलंगाना, कर्नाटक, छत्तीसगढ़, उड़ीसा, महाराष्ट्र, तमिलनाडु सहित करीब 9 राज्यों में इस घोटाले से जुड़े मामले दर्ज हैं।

वो कौन-सी स्कीम थी, जिससे हजार-दो हजार नहीं, 32 लाख लोगों से 6380 करोड़ रुपये ठगने का आरोप है?


ईडी का कहना है-


अवा वेंकट रामाराव ने साजिशन ये स्कीम चलाई. उसने अपने सात भाइयों को भी इसमें शामिल किया। कई और लोगों के साथ मिलकर 150 कंपनियां खोलीं.।लोगों से बड़े रिटर्न का वादा करके रकम जमा करवाई. इस काम के लिए उसने हजारों कलेक्शन एजेंट लगा रखे थे।


ईडी के अनुसार, एग्री गोल्ड ग्रुप के प्रमोटर अवा वेंकट रामाराव का नाम पहले भी एक पोंजी स्कीम में आ चुका है। वह इस तरह की स्कीम चलाने का पुराना खिलाड़ी है।


कंपनी ने अपने हजारों एजेंटों के जरिए 36 लाख से ज्यादा लोगों का पैसा इनवेस्ट करवाया।

कैसे लगाई लाखों लोगों को करोड़ों की चपत?


एग्री गोल्ड ग्रुप की कंपनियों ने कुछ साल पहले चिटफंड स्कीम की शुरुआत की। एक ग्रुप के तले सैकड़ों कंपनियां खोली गईं। इन कंपनियों के प्लान बेचने के लिए हजारों की संख्या में एजेंट रखे गए. हर पोंजी स्कीम की तरह इसमें भी झांसा दिया गया कि जो इस स्कीम में पैसा लगाएगा, बेहतरीन रिटर्न पाएगा.।हालांकि इस स्कीम में कंपनी ने जमीन का भी एक एंगल डाला, कहा कि जो लोग पैसा लगाएंगे, उससे खेती के लिए जमीन खरीदी जाएगी। फिर उसे डिवेलप किया जाएगा. अगर निवेशक चाहे तो डिवेलप होकर लाखों की हो चुकी जमीन को अपनी जमा राशि से बहुत सस्ते में ले सकता है। अगर कोई इनवेस्टर उस जमीन को नहीं लेना चाहेगा तो मूल धन के साथ ही तगड़ा ब्याज दिया जाएगा। इस चिटफंड स्कीम को देश भर के कई राज्यों में एक साथ फैलाया गया। ईडी के मुताबिक, इस स्कीम के जरिए 32 लाख लोगों को इस ग्रुप में जोड़ा गया और उनसे निवेश कराया गया। 


ईडी के अनुसार-


इन कंपनियों ने कभी नहीं बताया कि वह जो जमीनें खरीद रही है, उसकी लोकेशन क्या है। उस जमीन की असली कीमत कितनी है, जमीन का लेआउट क्या है, वह किस अथॉरिटी के अधिकार में आती है, ये सब जानकारियां भी नहीं दी गईं। इन्होंने अपने पूरे बिजनेस को रियल एस्टेट का कलेवर पहनाया, लेकिन असल में यह एक बिना लाइसेंस और नियम-कायदे के पैसा जमा करने की स्कीम से ज्यादा कुछ नहीं थी।


जांच से पता चला है कि एग्री गोल्ड ग्रुप ऑफ कंपनीज़ के पास इस तरह के डिपॉजिट के लिए ली जाने वाली आरबीआई की परमीशन भी नहीं है। एक अधिकारी ने बताया-


जब रेग्युलेटरी अथॉरिटी सेबी को इस कंपनी की जानकारी मिली तो उसने रकम जमा करने का काम फौरन रोक देने को कहा। आगे किसी तरह का कलेक्शन करने से भी मना किया, लेकिन सेबी की बात मानना तो दूर, आरोपी वेंकट रामाराव ने नई कंपनियां खोलकर उनके नाम पर पैसा जमा करना शुरू कर दिया। कलेक्शन के लिए अपने हजारों एजेंटों की फौज मैदान में उतार दी। एक दिखावे के रियल एस्टेट प्रोजेक्ट को उसने पोंजी स्कीम में तब्दील कर दिया।


जमीन खरीदने के झूठे दावे करते रहे


ईडी के मुताबिक, 32 लाख से भी ज्यादा लोगों से जमा किए  6,380 करोड़ से जितनी जमीन खरीदी गई, उनकी वैल्यू वादे के मुताबिक नहीं थी। कंपनी के पास अभी कुल 5.5 लाख प्लॉट हैं। हालांकि ये कंपनी का दावा है, जिसकी जांच होना बाकी है।


ईडी का आरोप है कि वेंकट रामाराव और उसका परिवार पूरी रकम डायवर्ट करने में जुटा था। इसके लिए परिवारवालों के नाम पर शेल कंपनियां बनाई जा रही थीं। उनमें पैसा इनवेस्ट किया जा रहा था. इसके लिए विदेश में भी कंपनियां खोली गईं, और उनमें पैसे भेजे गए।


ईडी ने गिरफ्तारी के दौरान अवा वेंकट रामाराव और दूसरे डायरेक्टरों के घर की तलाशी भी ली थी। इस दौरान जमीन से जुड़े कई कागजात, 22 लाख रुपए कैश और कई डिजिटल डिवाइसेज मिलीं, जिनकी जांच की जा रही है।

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