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जानिए मायावती के राजनैतिक वारिस बनने की रेस में कौन कौन है ?


बसपा की एक नेत्री, जिसे कभी देश के प्रधानमंत्री रहे पीवी नरसिंह राव ने लोकतंत्र का चमत्कार कहा था। जिसने सियासी रूप से देश के सबसे ताकतवर सूबे उत्तर प्रदेश की सियासत के तमाम स्थापित समीकरणों को उलट-पलट कर रख दिया। देश की राजनीति में दलित चेतना के नए युग का सूत्रपात किया। 4 बार उत्तर प्रदेश की मुख्यमंत्री रहीं, वो आज 65 बरस की हो चुकीं है। नाम है मायावती। जी हां, हम बात कर रहे हैं बहुजन समाज पार्टी की अध्यक्ष मायावती की, जिनका 15 जनवरी को जन्मदिन होता है।

जानिए मायावती के राजनैतिक वारिस बनने की रेस में कौन कौन है ?


मायावती अभी राजनीति में सक्रिय हैं, लेकिन जब-तब ये सवाल उठता रहता है कि उनका सियासी वारिस कौन होगा। नेतृत्व की अगली पीढ़ी का ये सवाल सिर्फ मायावती पर ही नहीं, बल्कि नीतीश कुमार, नवीन पटनायक और ममता बनर्जी पर भी लागू होता है, लेकिन चूंकि आज मायावती का जन्मदिन है, इसलिए हम मायावती और बहुजन समाज पार्टी के भावी नेतृत्व पर ही फोकस करेंगे। बड़ी ही शिद्दत से कांशीराम ने इस पार्टी को बनाया, संवारा और देश के सबसे बड़े सूबे की सत्ता तक पहुंचाया। यह कांशीराम की दूरदर्शिता का ही कमाल था कि आजादी के बाद देश ने मायावती के रूप में पहली बार इतने बड़े स्तर पर दलित महिला का नेतृत्व देखा।

आइए देखते हैं कि वो कौन-कौन से लोग हैं, जिन्हें बसपा के भावी नेतृत्वकर्ता के रूप में देखा गया या देखा जा रहा है।

जानिए मायावती के राजनैतिक वारिस बनने की रेस में कौन कौन है ?


1.आकाश आनंद

ब्रिटेन से MBA, आकाश आनंद मायावती के भाई आनंद कुमार के बेटे हैं, यानी मायावती के भतीजे हैं। 2019 के लोकसभा चुनावों में मायावती ने चुनावी दौरों में उन्हें अपने साथ घुमाया भी था। आकाश टेकसेवी माने जाते हैं. उनके बारे में आम धारणा यह है कि वह अपने टेक्नालॉजी प्रेम के कारण नई पीढ़ी से जुड़ने में सक्षम हैं। पिछले चुनावों में उन्होंने पार्टी की तरफ से सोशल मीडिया से संबंधित कुछ जिम्मेदारियां भी संभाली थीं। तभी से राजनीतिक हलकों में यह धारणा बनने लगी है कि आकाश आनंद मायावती के संभावित राजनीतिक वारिस हो सकते हैं।

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2. आनंद कुमार

मायावती के भाई हैं आनंद कुमार और उनके बहुत करीबी भी हैं. चूंकि कई राजनीतिक दलों में परिवार के सदस्यों को ही विरासत सौंपने की परंपरा है, इसलिए यह अनुमान लगाया गया कि आनंद कुमार मायावती के उत्तराधिकारी हो सकते हैं।

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3. राजाराम

राजाराम आजमगढ़ के रहने वाले हैं। इनका का नाम भी मायावती के उत्तराधिकारी के तौर पर लिया गया। मायावती आज़मगढ के पास की अकबरपुर संसदीय सीट से सांसद हुआ करती थीं, अक्सर उस इलाके का दौरा किया करती थीं। इसी दौरान उनकी नजर पार्टी के कार्यकर्ता और लाॅ ग्रेजुएट राजाराम पर पड़ी। इसके बाद राजाराम का सियासी कद बड़ी तेजी से बढ़ने लगा। जल्दी ही उन्हें राज्यसभा भेज दिया गया. वह पार्टी के राष्ट्रीय उपाध्यक्ष भी बना दिए गए।

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4.आर.के. चौधरी

काशीराम के जमाने से बसपा से जुड़े थे आर.के. चौधरी। वह मायावती की पहली कैबिनेट के सदस्य रहे। शुरू में उन्हें मायावती का सबसे विश्वस्त सहयोगी माना जाता था। इसी कारण गाहे-बगाहे मायावती के उत्तराधिकारी के तौर पर भी उनका नाम लिया गया। लेकिन इन सब अटकलों पर 2002 में तब विराम लग गया, जब आर.के. चौधरी को बसपा से निष्कासित कर दिया गया. हालांकि बाद में वह पार्टी में लौटे, लेकिन जून 2016 में यह कहते हुए पार्टी छोड़ दी कि बसपा में टिकटों की खरीद-बिक्री होती है। फिलहाल आर.के. चौधरी कांग्रेस में हैं।

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5. स्वामी प्रसाद मौर्य

कभी मायावती के बाद बसपा में नंबर 2 माना जाता था यह नाम। स्वामी प्रसाद मौर्य को एक दौर में मायावती का करीबी सिपहसालार माना जाता था। इस हैसियत से उन्हें भी एक दौर में मायावती के उत्तराधिकारी के तौर पर देखा जाता था। स्वामी प्रसाद मौर्य पूर्वी उत्तर प्रदेश की पडरौना सीट से 5 बार विधायक रहे। मायावती की सरकारों में मंत्री रहे। बसपा विधायक दल के नेता और उस हैसियत से विधानसभा में विपक्ष के नेता भी रहे, लेकिन धीरे-धीरे पार्टी में किनारे किए जाने लगे। पार्टी में अपनी उपेक्षा से आहत स्वामी प्रसाद मौर्य ने जून 2016 में पार्टी छोड़ दी। पार्टी छोड़ते वक्त उन्होंने भी आर.के. चौधरी की तरह ही पार्टी नेतृत्व पर टिकटों की खरीद-फरोख्त का आरोप लगाया था। फिलहाल भारतीय जनता पार्टी में हैं और उत्तर प्रदेश सरकार में मंत्री हैं।

 

इन सबके अलावा कभी सतीश चंद्र मिश्रा और नसीमुद्दीन सिद्दीकी का नाम भी मायावती के उत्तराधिकारी के तौर पर लिया जाता था, लेकिन 2008 में मायावती के दलित समाज से अपना उत्तराधिकारी चुनने वाले बयान के बाद इन दोनों नामों की चर्चा पर विराम लग गया।

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